Breaking the hunger strike by farmer leader Dallewal is the right step

Editorial: किसान नेता डल्लेवाल का आमरण अनशन तोड़ना सही कदम

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Breaking the hunger strike by farmer leader Dallewal is the right step

Breaking the hunger strike by farmer leader Dallewal is the right step: संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) के नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने अपना आमरण अनशन समाप्त कर सही कदम उठाया है। वे 131 दिन से किसानों की मांगों को लेकर इस अनशन को कर रहे थे। गौरतलब यह है कि इससे पहले केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह ने इसके लिए आह्वान किया था कि किसान नेता अपना अनशन समाप्त करें। डल्लेवाल मजबूत मनोबल के किसान नेता हैं और अब तक छह बार अनशन कर चुके हैं। यह उनका अब तक सबसे लंबे समय तक चलने वाला अनशन रहा। अनशन के पहले दिन से लेकर इसके समापन तक डल्लेवाल का जीवन बेहद संघर्षमय में रहा है। बीच में अनेक बार उनका स्वास्थ्य पूरी तरह से डांवाडोल हुआ। सुप्रीम कोर्ट की ओर से भी उनसे आग्रह किया गया कि वे अनशन समाप्त करें। सरकारों की ओर से इसके प्रयास किए गए कि वे अपने अनशन को समाप्त कर लें। लेकिन डल्लेवाल अपनी जिद पर अड़े रहे। यहां तक कि अनशन पर रहते हुए ही उन्होंने केंद्र सरकार के साथ वार्ता में हिस्सा लिया। अब केंद्र सरकार के साथ 4 मई को फिर वार्ता होने जा रही है और उसमें डल्लेवाल भी प्रतिभागी होंगे। किसानों का एमएसपी की सरकारी गारंटी और अन्य मांगों को लेकर आंदोलन सही दिशा में बढ़ रहा है। केंद्र सरकार लंबे समय तक किसानों से वार्ता करने से झिझकती रही, लेकिन अब उसकी राय भी इन मांगों के स्थायी समाधान की प्रतीत हो रही है।  

किसानों और पंजाब सरकार के बीच बातचीत का तारतम्य टूटना दुखद रहा है। यह अपने आप में अप्रत्याशित भी रहा कि एकाएक शंभू बॉर्डर पर बैठे किसानों को हटा दिया गया। बीते दो साल के करीब किसानों ने यहां डेरा डाला हुआ था। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट तक जिस काम के लिए सरकार को निर्देशित कर रहे थे और उसे करते हुए वह झिझक रही थी। उसे उसने अपनी इच्छा से कुछ भी घंटों में कर दिखाया। राज्य सरकार ने जनता को पेश आ रही परेशानियों को बखूबी समझा है और उसके मुताबिक किसानों को हटाया। हालांकि इस दौरान उसने किसानों के साथ दुश्मनी भी मोल ले ली। अब किसान जिस प्रकार से केंद्र सरकार से मिलीभगत का आरोप लगा रहे हैं, वह आप की प्रदेश में सियासत के लिए नुकसानदायक हो सकता है।

किसानों के मामले बेहद संवेदनशील होते हैं या फिर उन्हें बना दिया जाता है। लेकिन यह आवश्यक है कि वैश्विक मार्केट को देखते हुए भारत में खेती-किसानी को लेकर मंथन किया जाए। किसानों का हित उनके खेत और उनकी मिलकियत तक सीमित है। वे जो उगाना चाहते हैं, उसे सरकार के द्वारा एमएसपी पर खरीदवाना चाहते हैं। हालांकि उस उत्पादन को कहां बेचकर सरकार इतनी रकम लेकर आएगी कि उसे किसानों को दे सके, विचार का विषय है। किसानों की बेहतरी आवश्यक है और खेती को सर्वोच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिए लेकिन किसान की उपज को मध्यस्थ आगे कई गुणा कीमत पर बेचकर अगर अपना स्वार्थ पूरा कर रहे हैं तो यह भी गौर करने लायक है, तब किसानों की मांग जायज नजर आती है। तीन कृषि कानूनों के  समय आम जनता ने भी इस बात को बखूबी समझा था, लेकिन आखिर खेती और किसानों की बेहतरी का और क्या रास्ता हो सकता है, उसे अमलीजामा पहनाया जाना जरूरी है।

इस बीच अगर किसान नेता डल्लेवाल, जिनकी वजह से यह किसान आंदोलन संचालित है और जिनकी वजह से केंद्र सरकार वार्ता करने को तैयार हुई है, की बात करें तो वे सच्चे किसान योद्धा हैं, वे किसान बिरादरी के लिए अपने जीवन को दांव पर लगा चुके हैं। यह अपने आप में आज के समय में गांधीगिरी का अनूठा उदाहरण है। हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने देश की आजादी के लिए अनेक बार ऐसे अनशन किए। गांधी जी खुद ऐसे अनशनों के लिए विख्यात थे। लेकिन आज जैसे ऐसे अनशन बिल्कुल भी गंभीर नहीं रह गए हैं। हालांकि किसानों ने अपने आक्रामक आंदोलन की बजाय जिस प्रकार से अनशन को हथियार बनाया था, वह उचित है।

खुद डल्लेवाल के समर्थन में किसानों ने अनशन किया। वास्तव में किसानों की यह लड़ाई लंबी हो सकती है। जरूरत इसकी है कि बीच का रास्ता निकाला जाए। किसानों और केंद्र सरकार को वह करना चाहिए जोकि देश के व्यापक हित में हो। बेशक, किसानों को अपना हित सोचने का हक है। वहीं केंद्र सरकार को भी चाहिए कि वह ऐसा फार्मूला लेकर आए, जिससे किसानों की सभी जरूरतें पूरी होती हों। खेती-किसानी को बचाना देश को बचाने जैसा है।

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